ये जो दुनिया मे दिख रहा...
ये बस झूठ का साया है...
जितना ऊपर उठता है इंसान..
उतना नीचे गिरा खुद को पाया है...
जितना आगे बढ़ा हुआ लगे ...
उतना ही पीछे होता आया है ...
देवो का नियमो को छोड़ कर...
खुद का सविधान बनाया है ...
ये कलयुग का संसार है..
यहाँ झूठो की भरमार है...
दिखावे का है अपना पन...
दिखावे का बस प्यार है...
दिखावा ही दिखावा है...
ये दिखावा ही तो छलावा है...
जो जितना अच्छा दिखता है...
वो उतना अच्छा बिकता है...
ये दुनिया यहाँ व्यापारी है..
यहाँ हर कोई कारोबारी है...
सबको ठगने को तैयारी है..
बेईमान ये दुनिया सारी है...
यहाँ सबके बगल मे छुरी है...
मुँह मे ना राम का नाम है...
झूठे का रंग हुआ गोरा है....
सच बन गई अँधेरी शाम है...
कभी मेहनत यहाँ जरूरी थी..
अब जरूरी महफिल और जाम है..
यहाँ होते थे कभी लोग भोले भाले...
अब शहर से आगे चलते गांव है...
कभी धुप मे भी नहीं लगती थी तपन...
अब जलाने लगी यहाँ छाँव है...
ये दुनिया झूठ की बस्ती है....
सच की खो गई हस्ती है..
यहाँ चारो तरफ दिखावा है....
इंसान रोज बदलता आया है...
खुद के ही संस्कार जब लगने लगे विकार...
तो क्या करेगा भगवान और क्या करेगीं सरकार...
खुद ही खुद को बदल कर खुद ही बनो खुद के हथियार...
नहीं तो तुमको भी ले डूबेगा ये व्यापार...
तन मन धन सब ले जाना अपने साथ...
जब टूट जाये जीवन की डोर शुरू हो जाये अन्तिम रात...
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