Friday, 5 July 2024

क्या सच मे हम जी रहे है

सब नौकर बनने क़ो लगे हुए....

अपनी काबिलियत क़ो तराश कर...

क्या मिला आज़ादी के बदले मे...

गुलामी की जंजीरो से निकाल कर...

नाग पाश सा बंधे हुए है...

जहर रोज घुट घुट पी रहे है...

जीने के लिए ही आये जहान मे.. 

क्या सच मे हम जी रहे है...

वेद पुराण और गीता ज्ञान..

इन सबका छोड़ के ध्यान..

आजादी के बाद लिखा सविधान..

पढ कर अंग्रेजो का क़ानूनी ज्ञान..

जो कानून थे गुलामों के लिये..

आपस मे सबको लड़ाने के लिए..

उन कानूनो को ग्रन्थ मान कर हम..

आपस मे लड़ लड़ कर जी रहे है..

जीने के लिए ही आए हम जहान मे..

पर क्या सच मे हम जी रहे है..

व्यथा और पीड़ा सबकी मिटाते..

एक दूसरे के लिए जी जान लगाते..

लड़ते शरण मे आए के लिए..

शरणागत रक्षा का वचन निभाते..

गुणों और कर्मो की धरती पर..

गुण व कर्म ही थे पूजे जाते...

भेद-भाव का माहौल बना कर..

भोले भालो को असभ्य बता कर..

पौराणिक गुणों को हटा कर..

अपनी शिक्षा को सभ्य बता कर..

अंग्रेजो का अनुसरण कर के ..

किस भ्रम मे जी रहे है...

जीने के लिए ही आए इस जहान मे..

क्या सच मे हम जी रहे है...

कुछ लोग दीवाने हुए यहाँ...

जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त...

भय काल का नहीं उन्हें...

सारे सदगुणों से युक्त...

अविरल आलौकिक शक्ति पाश ले...

पथ से तनिक भी ना हो विमुक्त...

वारे तन मन धन और जीवन मातृभूमि पर...

क्या हम तनिक भी उनके जैसा ज़ी रहे है..

जीने के लिए ही आए जहान मे..

क्या सच मे हम जी रहे है..





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पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...