Saturday, 23 July 2022

जिंदगी का साया

किसी ने जिंदगी को खा कर मौत से मिलवाया....

फिर भी ना जाने वो क्यों ये ना समझ पाया....

दूसरे को मार कर खुद मौत का खौफ हो गया ...

किसी को मरते हुए देखना उनका शौक हो गया ...

अपने मे ऐसे घुल गया कि सारे गुनाह भूल गया ...

गलती बना के दूसरो कि खुद का पाप धुल गया...

झूठ का ऐसा साया ओढ़ के सच्चाई को छिपाया...

आईना भी उनको देख कर पहचान नहीं पाया....

खुश रहने का दिखावा इंसान इस कदर करता आया ...

मार कर भी जीते जी उनको सब्र नहीं आया....

कभी अपना समझा होता तो तकलीफ दिख जाती...

जिंदगी मौत से भी ज्यादा कठिन नहीं बन जाती....

हर पल मौत कि दुआ करता आया ....

 मर कर भी रोज़ रोज़ मरता आया ....

हमपे जिंदगी ने नहीं किया कोई रहम...

मौत तकलीफ देती होगी टूट गया ये वहम...

जीते जी मरा हुआ है खुद को पाया ...

शायद कर्मों मे जिंदगी को मौत से लिखवाया ...

ये बात कोई ही शायद समझ पाया...

क्या दर्द इन शब्दों ने है छलकाया ...

दुआ करते है ना मिले ऐसी जिंदगी का साया...

मरने से ज्यादा जिसको जीने से पछताया...





Sunday, 17 July 2022

बूंद

बूंद बूंद को तरसते कहीं....

बूंद बूंद कर बरसते कहीं.....

बूंद बूंद से भरता सागर....

बूंद बूंद कर रिस्ता गागर....

बूंदो की अपनी है कहानी...

बूंदो की अपनी जिंदगानी....

बूंद चली सागर से बन कर...

काले बदरा में भर भर कर....

पहुँच जाती जिस भी कोने में....

बरस जाती ठंडक बन कर....

बूंदो का है खेल निराला....

बुझा देती अग्नि की जवाला....

कभी जमीं पर कभी हवा मे....

कभी नदी और कभी दवा मे...

बह आती आँखों से प्यारी....

सुःख और दुःख मे कर के सवारी....

धरती की खुशहाली इससे....

प्रलय से कर सकती यारी...

होती ये छोटी सी बूंद है....

पड़ सकती है सबपे भारी....

तूफानों से इसकी यारी....

बादलों की करती है सवारी....

किस पल मे बनती है आफत....

किस पल मे बदले  ये रंगत....

जब भी ये बेकाबू होती....

हर किसी की शामत आती....

कहने को सिर्फ एक बूंद है.....

जब भी इसकी झड़ी लग जाती....

तब ये है बारिश कहलाती...



Friday, 15 July 2022

अपना कुछ भी नहीं

 ना धर्म कहीं ना जात कहीं ...

ना दुख कहीं ना सुख कहीं ...

ना दीन कहीं ना हीन कहीं ...

ना छोटा कहीं ना बड़ा कहीं ...

ना दलित कहीं ना स्वर्ण कहीं ...

ना गरीब कहीं ना अमीर कहीं ...

ना राजा कहीं ना रंक कहीं ...

ना सच्चा कहीं ना झूठा कहीं ...

ना माना कहीं ना रूठा कहीं ...

ना जिन्दा कहीं ना मरा कहीं ...

ना साधु कहीं ना संत कहीं ...

ना शुरूआत कहीं ना अंत कहीं ...

ना पीर कहीं ना फ़कीर कहीं ...

ना देव कहीं ना दानव कहीं ...

ना जीत कहीं ना हार कहीं ...

ना भूत कहीं ना प्रेत कहीं ...

ना जल्दी कहीं ना देर कहीं ...

ना सही कहीं ना गलत कहीं ...

ना दिन कहीं ना रात कहीं ...

ना कारण कहीं ना बात कहीं ...

ना नफ़रत और ना प्यार कहीं ...

ना ममता और ना दुलार कहीं ...

ना भेद कहीं ना भाव कहीं ...

ना शहर और ना गांव कहीं ...

ना धुप और ना छाँव कहीं ...

ना हाथ और ना पाव कहीं ...

ना अपना कहीं ना पराया कहीं ...

ना अपना कुछ भी आया यहीं ...

ये मेरा धर्म ये तेरा धर्म...

ना देखते हम कभी अपना कर्म..

ये प्यार मेरा ये प्यारा तेरा...

दुनिया में सबसे ज्यादा मेरा...

ना मान कहीं ना सम्मान कहीं ...

किसी का जिन्दा ईमान नही...

जिन्दा हो कर भी मरे हुए...

मौत से फिर भी डरे हुए...

जाग कर भी सोते हुए...

मोह माया में रोते हुए...

जिन्दा है बस सपनो में जो सपने अपने होते नहीं...

जिन सपनो कि खातिर हम किसी के होते नहीं...

चीख चीख कर इधर उधर भागते हुए लगते है सभी...

आंखे खोल के देखो तो अपना यहाँ कुछ भी नहीं...



मेरा लक्ष्य

 लक्ष्य सबके वहीं है यहाँ

                                  इस सपनो की दुनिया में...

कोई बनना चाहता है चिकित्सक

                                    कोई बनना चाहता है शिक्षक...

कोई बनना चाहता है सैनिक

                                   कोई बनना चाहता है वैज्ञानिक...

कोई बनना चाहता है खिलाडी

                                कोई बनना चाहता है व्यापारी....

कोई बनना चाहता है अभियंता

                               कोई जीतना चाहता दुनिया सारी...

सब के सब नादान बने है 

                                  रटे रटाये लक्ष्य बनाये...

जीवन भर वो जान ना पाये

                                  क्यों जन्म लेकर हम यहाँ है आये...

बनने को बड़ा इस दुनिया मे

                                    बड़े लक्ष्य पाने को लड़ते आये...

सपनो में खो कर वो अपने

                                   सच्चाई को कभी देख ना पाये...

बनना है तो बड़े बनो पर

                                 इंसान पहले बन कर दिखलाये...

मुझे कुछ नहीं बनना है

                                बस इंसान को जिन्दा रखना है...

दुनिया बन गई कठपुतली

                               खुद को काबू मे रखना है....

और चाहे कुछ बनु ना बनु

                               अच्छाई के रास्ते पे चलना है...

मुझे स्वार्थी इस दुनिया में

                                दिखावा कुछ नहीं करना है...

ना सपना मेरा कोई बस लक्ष्य एक है

                                 कि मुझे अच्छा इंसान बनना है...

पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...