Friday, 15 July 2022

अपना कुछ भी नहीं

 ना धर्म कहीं ना जात कहीं ...

ना दुख कहीं ना सुख कहीं ...

ना दीन कहीं ना हीन कहीं ...

ना छोटा कहीं ना बड़ा कहीं ...

ना दलित कहीं ना स्वर्ण कहीं ...

ना गरीब कहीं ना अमीर कहीं ...

ना राजा कहीं ना रंक कहीं ...

ना सच्चा कहीं ना झूठा कहीं ...

ना माना कहीं ना रूठा कहीं ...

ना जिन्दा कहीं ना मरा कहीं ...

ना साधु कहीं ना संत कहीं ...

ना शुरूआत कहीं ना अंत कहीं ...

ना पीर कहीं ना फ़कीर कहीं ...

ना देव कहीं ना दानव कहीं ...

ना जीत कहीं ना हार कहीं ...

ना भूत कहीं ना प्रेत कहीं ...

ना जल्दी कहीं ना देर कहीं ...

ना सही कहीं ना गलत कहीं ...

ना दिन कहीं ना रात कहीं ...

ना कारण कहीं ना बात कहीं ...

ना नफ़रत और ना प्यार कहीं ...

ना ममता और ना दुलार कहीं ...

ना भेद कहीं ना भाव कहीं ...

ना शहर और ना गांव कहीं ...

ना धुप और ना छाँव कहीं ...

ना हाथ और ना पाव कहीं ...

ना अपना कहीं ना पराया कहीं ...

ना अपना कुछ भी आया यहीं ...

ये मेरा धर्म ये तेरा धर्म...

ना देखते हम कभी अपना कर्म..

ये प्यार मेरा ये प्यारा तेरा...

दुनिया में सबसे ज्यादा मेरा...

ना मान कहीं ना सम्मान कहीं ...

किसी का जिन्दा ईमान नही...

जिन्दा हो कर भी मरे हुए...

मौत से फिर भी डरे हुए...

जाग कर भी सोते हुए...

मोह माया में रोते हुए...

जिन्दा है बस सपनो में जो सपने अपने होते नहीं...

जिन सपनो कि खातिर हम किसी के होते नहीं...

चीख चीख कर इधर उधर भागते हुए लगते है सभी...

आंखे खोल के देखो तो अपना यहाँ कुछ भी नहीं...



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पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...