Sunday, 17 July 2022

बूंद

बूंद बूंद को तरसते कहीं....

बूंद बूंद कर बरसते कहीं.....

बूंद बूंद से भरता सागर....

बूंद बूंद कर रिस्ता गागर....

बूंदो की अपनी है कहानी...

बूंदो की अपनी जिंदगानी....

बूंद चली सागर से बन कर...

काले बदरा में भर भर कर....

पहुँच जाती जिस भी कोने में....

बरस जाती ठंडक बन कर....

बूंदो का है खेल निराला....

बुझा देती अग्नि की जवाला....

कभी जमीं पर कभी हवा मे....

कभी नदी और कभी दवा मे...

बह आती आँखों से प्यारी....

सुःख और दुःख मे कर के सवारी....

धरती की खुशहाली इससे....

प्रलय से कर सकती यारी...

होती ये छोटी सी बूंद है....

पड़ सकती है सबपे भारी....

तूफानों से इसकी यारी....

बादलों की करती है सवारी....

किस पल मे बनती है आफत....

किस पल मे बदले  ये रंगत....

जब भी ये बेकाबू होती....

हर किसी की शामत आती....

कहने को सिर्फ एक बूंद है.....

जब भी इसकी झड़ी लग जाती....

तब ये है बारिश कहलाती...



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पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...