Wednesday, 18 January 2023

भला ?

इंसान भला अब भला कहाँ है...

भलाई का दौर गुजर चला है...

 सच की कोई कद्र नहीं है...

झूठ का कारोबार सजा है...

दुनिया बन गई है तमाशा...

टूट चुकी यहाँ हर आशा...

त्याग छोड़ सब भोग विलासा...

भविष्य मे है घोर निराशा...

मंजिल को रास्ते ने ढक लिया...

मौत को जिंदगी ने चख लिया...

बादल ने धरती पर आ कर...

सागर की नमी को ढक लिया...

इंसान ने जानवर को लाकर ...

इंसान की जगह पर रख लिया...

छोड़ कर विश्वास खुद से...

गैरों को अपनों से बदल दिया...

खुद को खुद से दूर कर दिया...

खुद ही खुद को मज़बूर कर दिया...

अच्छा खुद को दिखाने की खातिर...

बुराई का  पैमाना ही बदल दिया...

चलने का रास्ता बदल दिया...

मज़िल से वास्ता बदल लिया...

दिल से दिल के नाते को तोड़ कर...

खुद को सिर्फ खुद से जोड़ लिया...

कुछ खोज लिया कुछ छोड़ दिया...

जिंदगी भर का बोझ उठाकर...

अपने आप को तोड़ लिया...

जिंदगी से मुँह मोड़ लिया...

क्यों पागल है इंसान यहाँ...

क्या भला हमने अब जोड़ लिया...

बन कर इंसान जन्म लिया...

उम्र के साथ सब बदल लिया...

जीवन भर की कमाई ले कर ...

अंतिम मार्ग पे निकल लिया...

अंजाम बुरा हो या हो भला...

इस बात की फ़िक्र कहाँ है...

अकेला आया अकेला गया...

अब होता किसी का जिक्र कहाँ है...

क्या कमाया सब गवाया...

मरते मरते भी उलझा रहा...

मायाजाल के जंजाल में...

मृत्युशैया पर भी चैन नहीं...

लागे दिन रात नैन नहीं...

चमक चांदनी घेरे हर और...

मोह माया में बँधी हुई डोर....

मर कर भी टूट ना पाई...

मुक्ति की कामना करते करते...

अंतिम सास जब निकट आई...

सारा जीवन भूल गया ...

क्या क्या तब वो करता था...

भुल रहा है इंसान यहाँ...

भला भलाई ले के थोड़ी मरता है...














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पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...