Sunday, 13 March 2022

देश का दुर्भाग्य

जहाँ मेरी कभी पहचान थी वीरता,साहस और त्याग....
हर कोई आज यहां इन सब से रहा हैं भाग....
ना शूर रहे ना वीर रहे ना जन्म रहा अब कोई बाघ...
भगवान भी देख रहा है मेरा ये दुर्भाग्य....

हर तरफ बोलबाला है लूट और खसोट का....
इंसान अब भूखा है सिर्फ और सिर्फ नोट का....
ना देखते अपना पराया ना दर्द का अहसास है....
साथ है मतलब से हर शख्श सबको मतलब की प्यास है....

कोई साधु नहीं कोई संत नहीं सब यहाँ दिखावा है....
मीठा बन कर हर कोई यहाँ पर कर रहा छलावा है....
मुझे बेच कर सारा खुद को बनाया जिसने हैं महान...
सब कुछ लूट कर अपनों का बना ली है झूठी शान....

ना ये संस्कार मेरे थे ना ये शिक्षा मेरी थी ...
ना अब ये लोग मेरे वो ये परीक्षा अब मेरी हैं.....
भूल गये है खुद को वो की क्यों जन्म लिया यहाँ ....
खुद लूट रहे मुझे जी भर कर मुझको कैसे बचाएंगे....
इसी लिये मेरे दुर्भाग्य के दिन अभी और आएंगे...




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व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...