भारत माँ के वीर सपूत.....
होते थे देवों के दूत....
जो देखता आँख उठा कर....
मुक्ति देते बन यमदूत ....
चलते जब हिलते थे पर्वत....
कदम से कदम मिला कर...
बढ़ते आगे तान के सीना....
भागे ना पीठ दिखा कर....
लड़कर दुश्मन के प्राण निकले....
अपना हथियार उठा कर....
डरते ना थे मौत से कभी....
जीते थे सर उठा कर.....
हसते हसते प्राण त्यागते....
धन्य होते वीरगति को पाकर....
प्रण लेते और निभाते....
दुश्मन भी दूर भाग जाते....
युद्ध भूमि में जब वो आते....
महाकाल सी प्रलय मचाते.....
रण में दुश्मन को धुल चटाते....
मृत्यु के बाद भी धर्म निभाते....
ऐसे होते थे वीर देश के....
जो आज बहुत कम पाते...
दुःख होता मन सोच सोच कर....
क्यों नाच नाच लोग दिखाते....
क्यों भूल गये अपने आदर्शो को...
क्यों तमाशा बना खुश हो जाते....
क्या यही देश है जिसने अपने वीरों कि क़ुरबानी को भूला दिया....
त्याग तपस्या धैर्य सहित सारे गुणों को झुठला दिया.....
खुद के लिये जीने का प्रण कब से हमने बना लिया....
क्यों अपने संस्कारो को भूला कर खुद को ही मिटा लिया...
ये कैसे जीते जी हमने अपनी मौत को चूम लिया....
मार कर खुद को ना जाने कैसे जिन्दा रहना सीख लिया...
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