Saturday, 25 February 2023

विनाश लीला

जन्म मृत्यु काल है लिखता...

कर्म करता खुद के हाथों से...

अवगुण आते विचारों में...

गुण बनते संस्कारों से...

जीत होती परिश्रम से...

हार मन के हारे से...

साधु बनते साध स्वयं को...

असुर कर्म करते बुरे विचारों से ...

पाप कमाते अधर्मी धरा पर...

धर्म टिकता दान पुण्य करते प्यारों से...

धरती करती पालन पोषण निस्वार्थ...

माँ कहलाती सहनशील भाव से...

अज्ञानी रहता चूर घमंड मे...

ज्ञानी कहलाते अदभुत स्वभाव से ...

परिश्रमी अभ्यास लगनशील रहते...

आलसी छाँव व चाँद तारों में ...

प्रकृति बनती पंचतत्व से...

विनाश नये नये आविष्करो से...

जिज्ञासा से विज्ञान खोजते...

महान बनते त्याग और चमत्कारों से...

निर्धन लूट की लालसा से...

धनी होते मन के खुले द्वारों से...

रोशनी होती एक सूर्य से...

रात रोशन नहीं लाखों सितारों से...

सिंह करता वन में राज अकेला...

होता नहीं शिकार सियारों से...

युग युग बदले कालचक्र से...

सत्य बदले ना झूठ के प्रहारों से...

रंगत बदले संगत से...

चरित्र बदले कुसंगत से...

विश्वास टूटे धोखे से...

समय ना रुके रोके से...

विधाता माने भक्ति से...

शत्रु काँपे पराक्रम की शक्ति से...

मित्र साथ दे विपदा में...

घर बार बिछड़े आपदा में...

प्रकृति की है छटा निराली...

ये धरती बगिया सब है माली...

बात समझो समझने वाली...

बुद्धि को मत रखो खाली...

प्रकृति का मत करों उपहास...

धरती नभ अग्नि वायु जल...

 ये सब है ख़ास...

प्रलय घड़ी आने का...

जब तक तनिक होगा अहसास...

आधे संसार का धरती से...

हो चूका होगा विनाश...













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व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...