आखिरी सफर जहाँ ले जायेगा...
वहाँ कौन सा सकून मिल पायेगा...
जीते जी उखड़ती रहेगी सांसे...
मौत की दहलीज पर आने के बाद...
हर वक़्त तुमको याद आयेगा...
किस कदर जिंदगी की परवाह की थी हमने...
अब फ़िक्र की कहाँ ये यमराज ले जायेगा...
जो किये जुल्म और सितम अपनों ने...
क्या वक़्त वो निशान भर पायेगा...
जिंदगी का सफर आगे बढ़ता हुआ...
शमशान के दरवाज़े पर खत्म हो जायेगा...
कौन साथ आया था इस जहान में...
कौन साथ हमारे यहाँ से जायेगा...
पहचान करते रहते है सारी दुनियां की...
कभी इंसान खुद को पहचान पायेगा....
परखते हो ईमान सारे जहां का...
खुद के बेईमानी के निशान को क्या कभी परखा जायेगा...
बुराई देना आता है सारे संसार को...
कभी भलाई के लिये कोई कदम उठाया जायेगा...
गलत है हर इंसान दूसरे के नज़रिये से...
क्या खुद की गलती का अनुमान लगा पायेगा...
कभी साथ नहीं मिला रोता रहा मैं...
क्या किसी का साथ जिंदगी भर दे पायेगा...
साथ देने वाला कब तक साथ निभायेगा...
जो निभा रहा है वो कौन सा साथ जायेगा...
भूल जाना मेरी हर गलती को गलती मान कर...
क्या खुद कभी किसी को माफ़ कर पायेगा...
बना हूँ मरने के लिये जिंदगी भर जीने के बाद...
जीते जी मरने से कैसे बच पाना है ...
खामोश हो जायेगी सारी दुःख तकलीफे...
जब आखिरी में सबसे बहुत दूर खुद को पाना है ...
मिट्टी हवाएं आकाश पानी अग्नि टूटने के बाद ...
अंत में इस जहान से अलविदा हो जाना है...
मौत तो आ कर ही रहेगी...
बस आखिर में बनता कोई ना कोई बहाना है..
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