Monday, 2 September 2024

पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार...
हर चीज का बना लिया व्यापार...
सब मरने मारने को है तैयार..
पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार...
क्यूंकि करते है पैसे से ही प्यार..
और पैसा ही है अपनी सरकार...
ईमानदारी की बात यही है... 
पैसे बिना कोई साथ नहीं है...
पैसा है तो है दुनियादारी...
नहीं तो जिंदगी हो जाती दुःखयारी...
हर कोई बन बैठा है व्यापारी...
खरीदने को ये दुनिया सारी....
पैसे के पीछे पड़ा है सारा संसार..
क्यूंकि करते है पैसे से ही प्यार...
पैसा ही है अपनी सरकार...
ना रिश्ते ना नाते ना कोई भाईचारा है ...
सब जिम्मेदारी आज के युग मे पैसा ही निभाता है ..
ना कोई किसी के काम आता है ..
इंसान सब कुछ पैसे से खरीद लाता है...
ना कोई दोस्त और ना कोई विधाता है ..
पैसा ही अभिमान बढ़ाता है ..
लूट ने से भी इंसान नही कतराता है ..
पैसा ही मारता है पैसा ही बचाता है...
क्यूंकि करते है पैसे से ही प्यार...
पैसा ही है अपनी सरकार...
जिंदगी का हर अहसान उतारे...
चाहे कोई देश पे जिंदगी वारे...
ये सबकी जिंदगी सँवारे...
इसी सोच से जी रहे है सारे...
बना देता किसी का भी ये मान..
करता शौर्य और कीर्ति का गुणगान ..
यही हो गया आज के युग मे  इंसान की अन्तिम पहचान....
जीने का बना बस एक ही हथियार...
सबको चाहिये पैसा नही चाहिये प्यार...
क्यूंकि करते है पैसे से ही प्यार...
और पैसा ही है अपनी सरकार...




Saturday, 31 August 2024

कलयुग की दुनिया

ये जो दुनिया मे दिख रहा...

ये बस झूठ का साया है...

जितना ऊपर उठता है इंसान..

उतना नीचे गिरा खुद को पाया है...

जितना आगे बढ़ा हुआ लगे ...

उतना ही पीछे होता आया है ...

देवो का नियमो को छोड़ कर...

खुद का सविधान बनाया है ...

ये कलयुग का संसार है..

यहाँ झूठो की भरमार है...

दिखावे का है अपना पन...

दिखावे का बस प्यार है...

दिखावा ही दिखावा है...

ये दिखावा ही तो छलावा है...

जो जितना अच्छा दिखता है...

वो उतना अच्छा बिकता है...

ये दुनिया यहाँ व्यापारी है..

यहाँ हर कोई कारोबारी है...

सबको ठगने को तैयारी है.. 

बेईमान ये दुनिया सारी है...

यहाँ सबके बगल मे छुरी है...

मुँह मे ना राम का नाम है...

झूठे का रंग हुआ गोरा है....

सच बन गई अँधेरी शाम है...

कभी मेहनत यहाँ जरूरी थी..

अब जरूरी महफिल और जाम है..

यहाँ होते थे कभी लोग भोले भाले...

अब शहर से आगे चलते गांव है...

कभी धुप मे भी नहीं लगती थी तपन...

अब जलाने लगी यहाँ छाँव है...

ये दुनिया झूठ की बस्ती है....

सच की खो गई हस्ती है..

यहाँ चारो तरफ दिखावा है....

इंसान रोज बदलता आया है...

खुद के ही संस्कार जब लगने लगे विकार...

तो क्या करेगा भगवान और क्या करेगीं सरकार...

खुद ही खुद को बदल कर खुद ही बनो खुद के हथियार...

नहीं तो तुमको भी ले डूबेगा ये व्यापार...

तन मन धन सब ले जाना अपने साथ...

जब टूट जाये जीवन की डोर शुरू हो जाये अन्तिम रात...










Sunday, 18 August 2024

समय

सब समय समय की बात है.. 

समय बदलता समय के साथ है..

समय का समय जब आता है...

समय नहीं रुक पाता है...

समय चलता ही जाता है...

समय मंजिल तक पहुंचता है...

जब समय के पास ही समय नहीं...

तो समय ठहर सा जाता है...

समय बिता हुआ कल होता...

समय भूत बन के डराता है...

समय का पल जो चला गया ...

अगले पल ही इतिहास कहलाता है..

समय आज के पल को बताता है..

समय आज मे जीना सिखाता है...

समय आने वाला जो होता... 

वो भावी विषय कहलाता है..

समय होता बड़ा बलवान है...

समय करता सबका गुणगान है...

समय अंत तक साथ देता...

समय जन्म देता नहीं पहचान है...

समय ने सब कुछ देखा है...

समय हाथ की रेखा है...

समय कर्मो का प्रमाण है...

समय बनाता सबको महान है...

समय अगर ख़राब है...

समय करवाता सब पाप है...

समय से ही आता दिन है...

समय से ही आती रात है...

ये समय समय की बात है...

समय बदल देता हर हालात है...

समय की हमेशा कद्र करो ...

समय लौट के ना कभी आता है...

जो बीत गया समय एक बार...

तो हर कोई यहाँ पछताता है...

समय कभी भी हारे ना...

ना समय कभी भी रुकता है...

समय को जीतना अनिश्चित है.. 

समय जीत के आगे चलता है...





Sunday, 28 July 2024

कालचक्र

 चलना होगा हमको अकेला..

क्योंकि साथ कोई ना जायेगा...

जीवन भर के दुःख दर्द को...

कोई और ना सहने आयेगा...

पीड़ा तन मन की व्यथा सुनकर भी...

कोई साथ नहीं दे पायेगा...

जो जीवन भर साथ निभायेगा...

वो काल चक्र कहलायेगा.. 2..

आएंगे जाएंगे उठेंगे बैठ जायेंगे...

जो रात को चैन से सोने के लिए...

पूरे दिन भर खूब कमाएंगे...

जब तक दिल की चाहत पुरी ना हो...

वो मरते जायेंगे मिट जायेंगे...

पर फिर भी इन आँखों से पर्दा...

कोई नहीं हटायेगा...

कठिन डगर को आगे बढ़ते.. 

कोई पार नहीं ले जायेगा...

जो जीवन भर साथ निभायेगा...

वों काल चक्र कहलायेगा... 2

इस काल चक्र की सुनो गवाही..

ना जाने कितने जन्म मरण...

देखी कितनी दुनिया की तबाही...

ना जाने कितनी बार दुनिया इसके आगे... 

जल कर बन गई स्याही ...

कितनी बर्फ सागर से जमती...

वापस सागर मे पिंघल कर आई ...

 इसकी निगाहों से दुनिया मे....

कोई कभी नहीं छिप पायेगा...

ये किसी भी क्षण तुमको...

मुक्ति हर दुःख से दिलायेगा...

अंतिम क्षण तक जो साथ देगा...

और साथ तुमको ले जायेगा...

वों काल चक्र कहलायेगा....2




क्या साक्षरता ही शिक्षा है

 ये प्रश्न ही आज परीक्षा है..

क्या साक्षरता ही शिक्षा है...

पागलो की तरह लगे हुए है...

जीवन आबाद बनाने मे...

पढना लिखना सीखते हुए..

अपने शौक भुनाने मे...

ना समझ स्वयं की...

ना काल चक्र की...

ना जन्म मृत्यु अध्यात्म ज्ञान पर ....

वेद पुराणों की बात हमने मानी है..

ये धर्म ग्रन्थ आज के युग मे...

लगते बस पुरानी कहानी है...

कर रहे है गलती बार बार...

अगर गलत बात ही हमने सही मानी है...

क्योंकी यही संस्कार है मैं हु बड़ा...

और हम ही सबसे बड़े ज्ञानी है...

इंसान ही तो आज के युग मे...

सबसे बडा अभिमानी है...

खुद को भगवान मानने मे..

नहीं उसको कोई परेशानी है...

क्या अक्षर की पहचान दुनिया मे ...

कर देती पुरी दीक्षा है...

ये प्रश्न ही आज परीक्षा है क्या साक्षरता ही शिक्षा है....

नौकरशाही ही हावी है...

शिक्षा सिर्फ किताबी है...

जो तलाश होती थी जीवन दर्शन की...

वो तलाश ही हुई नाकाफी है...

मृत्यु जन्म रहस्य खोज छोड़ कर..

प्रकृति से हुई शुरू नाइंसाफी है...

शिक्षा को सिर्फ बोल बोल कर...

क्या ताउम्र रटवाना काफ़ी है...

पढ लिख कर जो कर्म कर रहे...

उन कर्मो से सब पापी है....

इतिहास वर्तमान और भविष्य...

चीख चीख के कहते कहानी है....

हर विषय है कमजोर यहाँ....

लगा दिया पैसा पर ज़ोर यहाँ...

अध्यात्म ज्ञान की छोड़ कर खोज..

कर दी शुरू दुनिया मे मौज...

शिक्षा का यही बस रह गया उपयोग...

लग गया पैसों का रोग...

आएगा वो भी एक दिन संयोग...

जब सही से शुरू होगा योग...

गुण भूल अपने कर्मो का फल...

हर मनुष्य यहाँ रहा है भोग...

हर तरफ विलाप और वियोग..

प्रकृति के साथ नये नये प्रयोग...

ये बात ना तुमने जानी है..

ना अभी तक पहचानी है...

शिक्षा बना कर व्यापार सब कुछ उजाड़ कर...

खतरे मे दुनिया का हर प्राणी है....

फिर भी हम बेशर्म हो कर...

लिख रहे अपने ही अंत की कहानी है...

अंतिम क्षण अपने प्राणों की...

भगवान से मांगनी भिक्षा है....

ये प्रश्न ही आज परीक्षा है की क्या साक्षरता ही शिक्षा है...










Tuesday, 9 July 2024

अध्यापक बना व्यापारी

जो विद्या के कभी स्त्रोत थे..

गूंजते जिनके श्लोक थे...

गीता वेद पुराण ज्ञान भंडार जहाँ सुशोभित था..

कालचक्र प्रकृति विज्ञान प्रकाश जहाँ अलौकिक था...

जीवन मृत्यु का रहस्य जहाँ सुलझाया जाता था...

इंसान को भगवान से जहाँ मिलवाया जाता था...

शिक्षक जहाँ मात पिता और श्रीहरि से श्रेष्ठ होते थे...

जहाँ लगन परिश्रम त्याग गुण वाले मनुष्य तैयार होते थे...

कहाँ खो गए वो गुरुकुल आश्रम जो सच मे विद्यालय होते थे..

जहाँ सरस्वती विद्यमान हो कर सबको ज्ञान देती थी....

सबके जीवन मे ज्ञान प्रकाश भर जीने का ध्येय देती थी...

अब भोग विलास मे लिप्त इंसान किन गुणों कि बात करता है..

आज के इस संसार मे अध्यापक कहाँ तैयार किया जाता है...

इसलिए ही तो अध्यापक बन व्यापारी सिर्फ व्यापार सिखाता है...

पढ़ना भी आता है और पढ़ाना भी आता है..

गुणों को ना समझना और ना समझाना आता है...

ना संस्कारो कि अब कही पर बात होती है......

ना सिखना आता है और ना सिखाना आता है...

क्या दे कर जायेगा ये समझ ना आता है...

खुद का ध्येय ही जो ना जान पाता है...

मजबूर इंसान मज़बूरी कि दूकान चलाता है...

मजबूर अपने देश के भविष्य को बनाता है...

देखते ही देखते सब कुछ बदल जाता है...

शिक्षा और साक्षरता का फर्क ना जान पाता है...

ना धर्म और कर्मो पर कोई ध्यान दिया जाता है...

अध्यापक बनके व्यापारी सिर्फ व्यापार सिखाता है...

क्या शब्दों को पढ़ना सिखने से ज्ञान आता है....

क्या सही गलत कि समझ भी अब बनाई जाती है...

क्या किसी किस्से कहानी मे अच्छाई सुनाई जाती है...

हर तरफ अंग्रेजो के गुलाम नज़र आते है...

जिनकी शिक्षा बड़े चाव से अपनाई जाती है...

क्या कोई विद्यालय अब विद्या धन अर्जन पर बल देता है...

धन कैसे बढ़ाए बस इसके तरीके बनाता रहता है...

ना गुणों और अवगुणो का अंतर बतलाया जाता है...

देश प्रेम न्याय समाज धर्म अधर्म का ज्ञान सब सपना लगता है...

बस पैसा ही सर्वोपरि है और पैसा ही अपना है...

ये राग दिन रात हर जगह गा गा कर रटवाया जाता है..

अध्यापक बन के व्यापारी सिर्फ व्यापार सिखाता है...





Saturday, 6 July 2024

बदल गया सारा संसार

एक दौर गया कुछ सालों मे...

सब उलझ गया सवालों मे...

जो शिक्षा दीक्षा थी सही गलत की...

वो बस पाई जाती है ख्यालों मे...

नियम पराये हमने अपनाये...

खुद उलझें इनके जालों मे...

ना अपना धर्म ना अपने संस्कार...

बस आधुनिकता बनी व्यापार...

सांसे भी ले रहे उधार...

बदल गया सारा संसार...

जिंदगी मौत से बदतर हो गई...

सारे संसार की मानवता खो गई...

जिन्दा हो कर जो जिन्दा नहीं...

इंसान फिर भी दरिंदा नहीं...

क्या पर्दा आँखो पे गिरा के बैठे....

सच दुनिया मे दिखता नहीं....

फिर भी इंसान अंधा नहीं....

चले आगे अपनों को छोड़...

ना कोई साथ बस लगी है होड़...

मैं ही मैं बस बाकी है ...

मर मर कर जीना काफी है... 

इंसान दिमागी तोर से है बीमार..

बदल गया सारा संसार..

इंसान जगत मे आया क्यों...

ये प्रश्न समझना बाकी है...

खोज रहे बस मौज यहाँ...

जीवन भर उठा कर बोझ यहाँ...

कोई हमको अपना नहीं लगता...

कैसी ये नाइन्साफी है...

बस पैसा पैसा दिखता है...

और जीवन मे क्या बाकी है...

हम खुद ही खुद को भूल रहे...

बीच भंवर मे झूल रहे...

रिश्ते नातों की कदर नहीं...

जीते ज़ी करते सब्र नहीं..

ना भाई भाई  ना बेटा बाप ..

ना बहन भाई ना बाप बेटी मे बचा कोई प्यार ..

बदल गया सारा संसार..

वक़्त बदला अब ऐसा है..

सबकी जगह अब पैसा है..

ये गलती सब पे भारी है...

की मुझसे ही दुनियादारी है..

मैं ही दुनिया मे अकेला हु...

ये सोच एक बीमारी है...

आए अकेले अकेले ही जायेंगे...

पर निभानी दुनियादारी है...

इंसान आज का अभिमानी है...

बेईमान और झूठ फरेब हर तरफ की कहानी है...

सबको कह देते बेखौफ ये बाते..

ये बात कभी खुद ने मानी है...

खुद ही खुद के दुश्मन है...

पर दुनिया से दुश्मनी निभानी है...

क्या गजब इंसान हो रहे है तैयार..

बदल गया सारा संसार...

हमसे ही सच्चाई है और हमसे ही अच्छाई है..

हम ही वो भुगतेंगे जो बुराई हमने फैलाई है....

घुम फिर के हमको ही...

इस दुनिया से वापिस जाना है...

ये बात सभी को है पता..

और सबने भी ये माना है...

रास्तो पे चलते चलते...

मर जाना है मिट जाना है...

तो बुराई क्यों कमानी है..

 क्या साथ ले कर जाना है...

क्यों बुराई का हम करते नहीं तिरस्कार..

क्यों खुद की खुद से जंग की नहीं करते ललकार..

क्यों हम नहीं करते खुद मे ही सुधार...

क्यों बदल लिए अपने संस्कार...

क्यों बदल गया ये सारा संसार..








Friday, 5 July 2024

क्या सच मे हम जी रहे है

सब नौकर बनने क़ो लगे हुए....

अपनी काबिलियत क़ो तराश कर...

क्या मिला आज़ादी के बदले मे...

गुलामी की जंजीरो से निकाल कर...

नाग पाश सा बंधे हुए है...

जहर रोज घुट घुट पी रहे है...

जीने के लिए ही आये जहान मे.. 

क्या सच मे हम जी रहे है...

वेद पुराण और गीता ज्ञान..

इन सबका छोड़ के ध्यान..

आजादी के बाद लिखा सविधान..

पढ कर अंग्रेजो का क़ानूनी ज्ञान..

जो कानून थे गुलामों के लिये..

आपस मे सबको लड़ाने के लिए..

उन कानूनो को ग्रन्थ मान कर हम..

आपस मे लड़ लड़ कर जी रहे है..

जीने के लिए ही आए हम जहान मे..

पर क्या सच मे हम जी रहे है..

व्यथा और पीड़ा सबकी मिटाते..

एक दूसरे के लिए जी जान लगाते..

लड़ते शरण मे आए के लिए..

शरणागत रक्षा का वचन निभाते..

गुणों और कर्मो की धरती पर..

गुण व कर्म ही थे पूजे जाते...

भेद-भाव का माहौल बना कर..

भोले भालो को असभ्य बता कर..

पौराणिक गुणों को हटा कर..

अपनी शिक्षा को सभ्य बता कर..

अंग्रेजो का अनुसरण कर के ..

किस भ्रम मे जी रहे है...

जीने के लिए ही आए इस जहान मे..

क्या सच मे हम जी रहे है...

कुछ लोग दीवाने हुए यहाँ...

जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त...

भय काल का नहीं उन्हें...

सारे सदगुणों से युक्त...

अविरल आलौकिक शक्ति पाश ले...

पथ से तनिक भी ना हो विमुक्त...

वारे तन मन धन और जीवन मातृभूमि पर...

क्या हम तनिक भी उनके जैसा ज़ी रहे है..

जीने के लिए ही आए जहान मे..

क्या सच मे हम जी रहे है..





पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...