Tuesday, 14 March 2023

खो गया

खो गया संसार खो गया घर बार..

खो गया ऐतबार खो गया प्यार...

खो गई मंज़िल खो गया आधार...

खो गया स्वाभिमान खो गई पहचान...

खो गये अपने खो गये सपने...

खो गई अच्छाई खो गई सच्चाई...

खो गया मान खो गया सम्मान...

खो गया इंसान खो गये अरमान...

खो गया ज्ञान खो गया भगवान..

खो गया ध्यान खो गये विद्वान...

खो गई शुद्धता खो गये निशान... 

खो दिया विश्वास खो दिया अपनेपन का अहसास...

खो गये रिश्ते खो गये फरिश्ते...

खो गई भक्ति खो गई शक्ति...

खो गई ममता खो गई मानवता...

खो गई एकता खो गई क्षमता...

खो गये योगी खो गये उपयोगी...

खो गई समझ खो गई उपज...

खो गया बचपन खो गई शरारत...

खो गई जवानी खो गई शराफत...

खो गया इतिहास खो गई भूख प्यास...

खो गए पुराण खो गया गीता ज्ञान...

खो गये वेद खो गये भेद...

खो गये वीर खो गया धीर...

खो गये बदन से चीर खो गया ज़मीर...

खो गई शर्म खो गये सत्कर्म...

खो गया धर्म खो गया मर्म...

खो गया राज खो गया आज...

खो गये ताज़ खो गया समाज...

खो गये वैद खो गया इलाज...

खो गये साधु खो गए संत...

खो गए पुजारी खो गये नर-नारी...

खो गये पकवान खो गई शान...

खो गया दान खो गया अनुशासन ...

खो गये गांव खो गई छाँव...

खो गये खेल खो गये मेल...

खो गया भाईचारा खो गया संसार सारा...

जीते जी मरा हुआ फिरता है मारा मारा...

Saturday, 25 February 2023

विनाश लीला

जन्म मृत्यु काल है लिखता...

कर्म करता खुद के हाथों से...

अवगुण आते विचारों में...

गुण बनते संस्कारों से...

जीत होती परिश्रम से...

हार मन के हारे से...

साधु बनते साध स्वयं को...

असुर कर्म करते बुरे विचारों से ...

पाप कमाते अधर्मी धरा पर...

धर्म टिकता दान पुण्य करते प्यारों से...

धरती करती पालन पोषण निस्वार्थ...

माँ कहलाती सहनशील भाव से...

अज्ञानी रहता चूर घमंड मे...

ज्ञानी कहलाते अदभुत स्वभाव से ...

परिश्रमी अभ्यास लगनशील रहते...

आलसी छाँव व चाँद तारों में ...

प्रकृति बनती पंचतत्व से...

विनाश नये नये आविष्करो से...

जिज्ञासा से विज्ञान खोजते...

महान बनते त्याग और चमत्कारों से...

निर्धन लूट की लालसा से...

धनी होते मन के खुले द्वारों से...

रोशनी होती एक सूर्य से...

रात रोशन नहीं लाखों सितारों से...

सिंह करता वन में राज अकेला...

होता नहीं शिकार सियारों से...

युग युग बदले कालचक्र से...

सत्य बदले ना झूठ के प्रहारों से...

रंगत बदले संगत से...

चरित्र बदले कुसंगत से...

विश्वास टूटे धोखे से...

समय ना रुके रोके से...

विधाता माने भक्ति से...

शत्रु काँपे पराक्रम की शक्ति से...

मित्र साथ दे विपदा में...

घर बार बिछड़े आपदा में...

प्रकृति की है छटा निराली...

ये धरती बगिया सब है माली...

बात समझो समझने वाली...

बुद्धि को मत रखो खाली...

प्रकृति का मत करों उपहास...

धरती नभ अग्नि वायु जल...

 ये सब है ख़ास...

प्रलय घड़ी आने का...

जब तक तनिक होगा अहसास...

आधे संसार का धरती से...

हो चूका होगा विनाश...













Tuesday, 14 February 2023

जीवन चक्र

जन्म के बाद अंत और...

अंत के बाद पुनर्जन्म...

यही जीवन की परिभाषा...

यही है जीवनचक्र...

व्यर्थ में व्यथित होने से...

स्तिथि थोड़ी बदलेंगी...

कर्मो पर बल देने से...

परिस्थितिया जरूर बदलेंगी...

ज्ञान का उदघोष धरा पर ...

नव चेतना संचार करेगा...

समय चक्र भी उत्सुकता से ..

नव युग का शंखनाद करेगा...

काल दृष्टि की अनुकम्पा...

कर्मो पे आ के विराजेगी...

भौतिक युग में मानवता...

प्रयोगिकता पर बल देगी...

पर्यावरण को दूषित करके...

जीव तकनीकी बल से चलेगा आगे...

कृत्रिम यांत्रिक रचनाओ से...

कृत्रिम संसार के स्वपन है जागे...

जीवन सरल बनाने को...

मृत्युलोक की ओर है भागे ...

मानव कर्म श्रेष्ठ धर्म परायण...

बुद्धिवान पशु चरित्र अपना के...

मानसिक रोग विकार संग्रह कर..

प्रगति पथ पर बढ़ता आगे...

दूषित मानसिकता दुष्ट विचार त्याग ...

 मानवता को बढ़ाओ आगे...

चिर सनातन संस्कृति अदभुत...

पहचान राष्ट्र की आदि काल से...

आधुनिकता का धरा आवरण...

संस्कार भूले बोल चाल मे...

कृत्रिम युग में मशीनी भाषा...

तोड़ दी सांसारिक आशा...

परम्पराए संस्कार की जननी...

बिछड़ गुणों से हो गये धनी...

स्वर्ण आभूषण तन पर विराज...

मन चंचल प्रलोभनमय आज...

विकराल रूप प्रकृति दिखाती...

संकेत अंत निकट अनुभव कराती...

विधाता अमर अलौकिक शक्ति...

मृत्युकाल निकट तो जागे भक्ति...

सम्पूर्ण जीवन काल स्मरण धरा पर...

मोह और माया पाश मे अटका पा कर...

आई जीवन विहीन समय की बेला...

हमेशा स्वयं को पाता अकेला...

होता है अंतिम पड़ाव स्वर्ग नर्क का...

अंत काल विराम हो जब जीवन चक्र का...















Friday, 10 February 2023

खो कर पाया?

 खो गया भाईचारा खो गया संसार सारा...

खो गया ईमान धर्म हो गया इंसान बेचारा...

खो गई इज्जत आबरू खो गया विश्वास...

खो गया है समाज बस है पैसे की तलाश...

खो गये दानी खो गये विद्वानी...

खो गये जोहड़ कुएँ सूख गया है पानी...

खो गये जबान के पक्के खो गई वो कुर्बानी...

खो गये है रिश्ते नाते खो गई प्यार की निशानी..

खो गये राज पाठ खो गये वो राजा रानी...

खो गया इतिहास खो गये वीर बलिदानी..

खो गये आदर्श खो गया संघर्ष...

बस चल रहा है लूटने का विचार विमर्श...

खो गये संस्कार खो गया व्यवहार...

खो गया आधार हो गया व्यापार....

खो गई दुनियादारी बन गए सब व्यापारी..

खो गई भक्ति खो गई है शक्ति....

खो गया त्याग खो गया बैराग...

खो गया है बचपन खो गया है जीवन...

खो गई है बुद्धि खो गई है शुद्धि..

खो गया ज्ञान खो गया अभिमान...

खो गया ध्यान खो गई शान...

खो गया भगवान हो गये बेजान...

खो गई सच्चाई खो गई अच्छाई...

खो गई दया खो गई शर्म हया...

खो गया है अध्यात्म खो गया है सनातन

खो गई तपोविद्या खो गई पढ़ाई...

खो गया इंसान जगत से बस बची है चतुराई...

चतुर बन जरूरत से ज्यादा खुद अपनी बुला रहे तबाही...

खो जायएगी धरती पल में अगर सदबुद्धि ना आई....

अपना काल सामने खड़ा कर बस आग है हमने लगाई...

खोने वाला है भविष्य अगर अभी नहीं संभले भाई...




Monday, 6 February 2023

बहाना

आखिरी सफर जहाँ ले जायेगा...

वहाँ कौन सा सकून मिल पायेगा...

जीते जी उखड़ती रहेगी सांसे...

मौत की दहलीज पर आने के बाद...

हर वक़्त तुमको याद आयेगा...

किस कदर जिंदगी की परवाह की थी हमने...

अब फ़िक्र की कहाँ ये यमराज ले जायेगा...

जो किये जुल्म और सितम अपनों ने...

क्या वक़्त वो निशान भर पायेगा...

जिंदगी का सफर आगे बढ़ता हुआ...

शमशान के दरवाज़े पर खत्म हो जायेगा...

कौन साथ आया था इस जहान में...

कौन साथ हमारे यहाँ से जायेगा...

पहचान करते रहते है सारी दुनियां की...

कभी इंसान खुद को पहचान पायेगा....

परखते हो ईमान सारे जहां का...

खुद के बेईमानी के निशान को क्या कभी परखा जायेगा...

बुराई देना आता है सारे संसार को...

कभी भलाई के लिये कोई कदम उठाया जायेगा...

गलत है हर इंसान दूसरे के नज़रिये से...

क्या खुद की गलती का अनुमान लगा पायेगा...

कभी साथ नहीं मिला रोता रहा मैं...

क्या किसी का साथ जिंदगी भर दे पायेगा...

साथ देने वाला कब तक साथ निभायेगा...

जो निभा रहा है वो कौन सा साथ जायेगा...

भूल जाना मेरी हर गलती को गलती मान कर...

क्या खुद कभी किसी को माफ़ कर पायेगा...

बना हूँ मरने के लिये जिंदगी भर जीने के बाद...

जीते जी मरने से कैसे बच पाना है ...

खामोश हो जायेगी सारी दुःख तकलीफे...

जब आखिरी में सबसे बहुत दूर खुद को पाना है ...

मिट्टी हवाएं आकाश पानी अग्नि टूटने के बाद ... 

अंत में इस जहान से अलविदा हो जाना है...

मौत तो आ कर ही रहेगी...

बस आखिर में बनता कोई ना कोई बहाना है..







Saturday, 4 February 2023

खुदगर्ज़ी

 ये दुनिया कि खुदगर्ज़ी....

कर्मों की बेदर्दी ......

ना समझें किसी के दिल को....

बस करते है मनमर्जी....

जीते जी है मरना.....

मर मर कर के जीना.....

रोते रोते है हँसना...

हँस हँस कर है रोना....

खोते खोते पाना....

पाकर भी खोना.....

सब कुछ है यहाँ फर्जी... ये दुनिया की खुदगर्ज़ी...

जिंदगी की कहानी...

हर आँख में पानी...

दुनियां का विनाश...

करीब आता वक़्त खास...

हर तरफ है लाश...

करों किसी पे भी विश्वास...

टूटेगा तो होगा अहसास...

दुनियां मरी नहीं लेकिन ....

जीते जी हो गया सत्यानाश...

देख के भी दिखती नहीं...

खरीदने से भी मिलती नहीं...

हो गई है खुशियाँ कागजी... ये दुनियां की खुदगर्ज़ी..

भूख गई प्यास गई...

जीते जी सर्वनाश हुई...

पीछे पड़ पड़ के दुनियां में...

ख़त्म हुई तलाश नई...

क़ामयाबी भी झूठी है...

सारी दुनियां रूठी है...

अपेक्षाएं नहीं पूरी हुई...

सबकी किस्मत फूटी है...

ना ईमान रहा ना इज्जत...

सब अपनों ने ही लूटी है...

हर तरफ इन लुटेरों की...

हिसाब किताब की है पर्ची ... ये दुनियां की खुदगर्ज़ी

सब खटक रहे और भटक रहे...

अधूरे रास्तो पे लटक रहे...

दिखावे को दुनियां में बन कर पागल...

सटक रहे और मटक रहे...

देख तमाशा दुनियां का...

सब चटक रहे सब अटक रहे...

ना कोई मेल ना कोई जोल...

हर तरफ मतलब के है झोल...

हर वक़्त का खेल निराला...

निभा रहे है डबल रोल...

चलती है जैसे गोली...

मार रहे अपनों को ये बोल...

कोई होता नहीं यहाँ अपना बस...

दिखाने की है हमदर्दी... ये दुनियां की खुदगर्ज़ी...











Tuesday, 31 January 2023

न्याय

क्या ये न्याय है जिसका है वो उसको नहीं...

जिसको चाहा उसको दे दिया...

 दुनिया देखी ना कभी उस दौर की... 

न्यायमूर्ति बन बस फैसला दिया...

सुबूत देखे गवाह की सुन कर...

बस मनमर्जी का पाखंड रचा...

अपनी जान बचाने को जो बोला गया...

वो दोहराया वही आखिर तक लिखा गया...

ना खुद की आत्मा की आवाज़...

ना स्वयं विवेक ना स्वयं दृष्टि...

बस आँखों पे बांध के क़ानूनी पट्टी....

घृतराष्ट्र की तरह बैठ सिंहासन पर...

चिर निंद्रा के आसन पर...

ना धर्म दिखा ना अधर्मी...

ना सच की कही कोई खोज थी....

झूठ का दरबार सजा कर...

आँखों को बंद कर के सो गया...

न्याय की उम्मीद में अन्याय हो गया...

किसको बोले कलयुग की कहानी....

सच में सामने आ रही है...

जीते जी मृत्यु की सैय्या...

लगी हुई सामने नज़र आ रही है...

किस से उम्मीद करें जीत कर भी हारना है...

कलयुग में अन्याय से दूर थोड़ी भागना है...

न्याय गलियों में किस्से कहानियों में सुनाया जा रहा है...

अन्याय सच के तराजू में तोल के बेचा जा रहा है...

न्यायालय में न्याय का ही नामो निशान नहीं रहा है...

जो समाज में कभी नहीं बैठा है वही समाज का फैसला कर रहा है..


Monday, 23 January 2023

पप्पू के अंकल

 क्या देश में कोई सही से दायित्व का निर्वाह कर रहा है...

जिसके पास होना चाहिये दायित्व क्या उसी को मिल रहा है...

क्या घर परिवार की समझ वाला देश को परिवार समझ रहा है...

जिसने बस देखा व्यापार हो बस देश में व्यापार कर रहा है...

हर चीज में मुनाफा ढूंढ़ रहा है इंसान व्यापारी बन रहा है...

कहने को मेरा देश विकास करता हुआ दुनिया में आगे बढ़ रहा है...

नज़रों पे पर्दा गिरा दिया समाज को चुपचाप बदल रहा है...

पैसो को बना के सर्वोपरि आदर्शो को भुला दिया है...

किसकी कमी है ये की पैसा सबसे प्यारा है..

कभी भाईचारा सर्वोपरि था अब पैसा ही बना भाईचारा है...

नैतिक मूल्यों की बाते सबसे पहले हमको सिखलाई जाती थी...

खुद नैतिकता छोड़ के समाज को खोखला कर रहा है...

बस पैसा सबसे बडा है सरकार ने समझाया है...

पैसो की खातिर भाई को भाई से लडवाया है..

हर चीज पर कर लगाया है जन्म से मृत्यु तक पैसा हमसे कमवाया है..

बदले में सिर्फ मुनाफे में कर ही हिस्से आया है...

कभी आय कभी चूल्हा कभी खरीद फिरोक्त कभी सम्पति कर...

कभी पर्यावरण कभी स्वच्छता कभी उपभोक्ता कर भी लगाया है...

कुल मिलाकर सरकार ने गुलामी को याद दिलाया है...

सब करों पर अंग्रेजी टैक्स और जजिया कर का साया है..

देश का स्वर्णिम युग आया है गुलामों की तरह हर चीज पे कर लगाया है..

वाह रे सरकार तुनने इतने सालों मे सब कुछ व्यापार बना दिया...

इंसान को इंसान की जान का दुश्मन बना दिया...

पैसो की खातिर पागल हो कर सामाजिक तानाबाना ढहा दिया...

कोई किसी का नहीं सब पैसे के ये वाक्य सत्य करा दिया...

क्यों खुद की शिक्षा पद्धति पर तुमने कोई नहीं काम किया...

बडे बडे वादों के जुमले से बस राजनीति को चमका लिया...

दुनिया में नाम बनाने वाले दुनिया से अलग हमारी पहचान थी...

दुनिया की होड़ करते करते अपने आधार को मिट्टी में मिला दिया...

क्या यही है वो सोने की चिड़िया जहाँ जनता को शोषित करते गये..

कर वसूली करने की खातिर अत्याचार के नियम बनते गये..

क्यों सांस्कृतिक मूल्यों को जान कर अपना सविधान नहीं लिखा गया...

दुनिया में नाम कमाने की खातिर जनता को खूब लूटा गया...

कोई हिसाब नहीं मांगता सरकार से अपने मेहनत की लूट का...

सरकार को कभी नही समझ आयेगा पीछा छुड़ना पश्चिमी छूट का...

अदालते भी कुछ परिवारों की जागीर ऐसे हो गई...

फैसले दिये अंग्रेजो के क़ानूनो को पढ कर अपनी संस्कृति खो गई ....

ना जुर्म कोई बस सजा मिली जिसने सच को अपनाया...

झूठ का हाथ पकड़ के इंसान न्याय भी जीत लाया...

जो जीता नहीं जाता  वो खरीदा लिया जाता है....

भ्रष्टाचार का फैसला पैसो में मनचाहा करवा लिया जाता है...

ये देश हमारा महान और महान हमारी सरकार है...

बस एक दिन उस फैसले का इंतेज़ार है...

जब समझ सरकार को आएगा की सब कुछ यही छोड़ना है...

क्यों परेशान देश को करना है नंबर वन बन के हमको क्या करना है...

कोई नंबर नहीं देखेगा जो सामजिक होगा उसकी जीत है...

फुट डालो और राज करों ये बस अंग्रेजो की नीति है ...

उसको आगे बढ़ा के राज क्यों देश पर करना है...

सबको अंग्रेज बनना है तो क्यों नाम अलग रखना है...

क्यों वो ही अकेला पप्पू है आपको भी उसका ही अंकल बनना है...




Wednesday, 18 January 2023

भला ?

इंसान भला अब भला कहाँ है...

भलाई का दौर गुजर चला है...

 सच की कोई कद्र नहीं है...

झूठ का कारोबार सजा है...

दुनिया बन गई है तमाशा...

टूट चुकी यहाँ हर आशा...

त्याग छोड़ सब भोग विलासा...

भविष्य मे है घोर निराशा...

मंजिल को रास्ते ने ढक लिया...

मौत को जिंदगी ने चख लिया...

बादल ने धरती पर आ कर...

सागर की नमी को ढक लिया...

इंसान ने जानवर को लाकर ...

इंसान की जगह पर रख लिया...

छोड़ कर विश्वास खुद से...

गैरों को अपनों से बदल दिया...

खुद को खुद से दूर कर दिया...

खुद ही खुद को मज़बूर कर दिया...

अच्छा खुद को दिखाने की खातिर...

बुराई का  पैमाना ही बदल दिया...

चलने का रास्ता बदल दिया...

मज़िल से वास्ता बदल लिया...

दिल से दिल के नाते को तोड़ कर...

खुद को सिर्फ खुद से जोड़ लिया...

कुछ खोज लिया कुछ छोड़ दिया...

जिंदगी भर का बोझ उठाकर...

अपने आप को तोड़ लिया...

जिंदगी से मुँह मोड़ लिया...

क्यों पागल है इंसान यहाँ...

क्या भला हमने अब जोड़ लिया...

बन कर इंसान जन्म लिया...

उम्र के साथ सब बदल लिया...

जीवन भर की कमाई ले कर ...

अंतिम मार्ग पे निकल लिया...

अंजाम बुरा हो या हो भला...

इस बात की फ़िक्र कहाँ है...

अकेला आया अकेला गया...

अब होता किसी का जिक्र कहाँ है...

क्या कमाया सब गवाया...

मरते मरते भी उलझा रहा...

मायाजाल के जंजाल में...

मृत्युशैया पर भी चैन नहीं...

लागे दिन रात नैन नहीं...

चमक चांदनी घेरे हर और...

मोह माया में बँधी हुई डोर....

मर कर भी टूट ना पाई...

मुक्ति की कामना करते करते...

अंतिम सास जब निकट आई...

सारा जीवन भूल गया ...

क्या क्या तब वो करता था...

भुल रहा है इंसान यहाँ...

भला भलाई ले के थोड़ी मरता है...














पैसा ही सरकार

व्यापार बना जीने का आधार... हर चीज का बना लिया व्यापार... सब मरने मारने को है तैयार.. पैसा ही घर बार और बना गया जिगरी यार... क्यूंकि करते है...